तुम्हें छोड़ने के डर से
पाने की चाहत नहीं रही ।
हाँ हर निग़ाह में तुम हो
ये आदत भी गयी नहीं ।
कब चल दिये ,किस ओर चल
दिऐ सारे हिसाब़ बही मे लिखे ।
हर सुबह की साँझ में पल्लू
पसारे इबादत बुदबुदा रही ।
तुम नहीं तो कुछ नहीं,माँगां कभी
नही ,पाया कभी नही,सभी ख्वाहिशों ।
के तर्पण चढ़ा गयी,न खोने का
भय ,न पाने की दिली जुस्तजू ।
मिल के ग़ुम हो जाओ,सहने में मुश्किल
इसलिऐ पाने की चाहत कभी रही नहीं ।
@अंकित सैनी औधयान
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