Kavita

तुम्हें छोड़ने के डर से
पाने की चाहत नहीं रही ।

      हाँ हर निग़ाह में तुम हो
      ये आदत भी गयी नहीं ।

कब चल दिये ,किस ओर चल
दिऐ सारे हिसाब़ बही मे लिखे ।

      हर सुबह की साँझ में पल्लू
      पसारे इबादत बुदबुदा रही ।

तुम नहीं तो कुछ नहीं,माँगां कभी
नही ,पाया कभी नही,सभी ख्वाहिशों ।

      के तर्पण चढ़ा गयी,न खोने का
      भय ,न पाने की दिली जुस्तजू ।

मिल के ग़ुम हो जाओ,सहने में मुश्किल
इसलिऐ पाने की चाहत कभी रही नहीं ।
@अंकित सैनी औधयान

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